ख्वाहिशें (A Hindi Poem)

डॉइन्दीवर मिश्र
E-mail: info@globalculturz.org



यूं तो ख्वाहिशें तमाम हैं जो खत्म होती ही नहीं
एक है राह के मुकाम पे, तो दूसरी है चल पड़ी
हर सुबह की पेहली किरण से है जन्म लेती ख्वाहिशें
और रात के अंधियारों में है घुटती मरती ख्वाहिशें
एक जिन्दगी भी कम पड़े, हैं इतनी सारी ख्वाहिशें
फिर जिन्दगी हो और हम भी हों, साथ हों फिर ख्वाहिशें
कुछ ख्वाहिशें इस जहान की कुछ ख्वाहिशें उस जहान की
कुछ इस कदर फैली हूई की ख्वाहिशें आसमान सी
कोई चाहे टुकड़ा चाँद का कोई चाँदनी में ही झूमता

हर शख्स है जुदा जुदा और जुदा जुदा है ख्वाहिशें

लेखक परिचय
 डॉo इन्दीवर मिश्र मूलतः उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के निवासी हैं। वर्तमान में, डॉo मिश्र दिल्ली विश्वविद्यालय के अधीन डॉo भीम राव अम्बेडकर महाविद्यालय में बतौर सहायक आचार्य (मनोविज्ञान विभाग) कार्यरत हैं। इसके पूर्व डॉo मिश्र भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की के मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग में सहायक आचार्य के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

Video: City & Life-Tokyo

Brazil Feed

German Feed

Japanese Feed (Asahi)

India Feed (Hindi)

US Feed NYT

Australian Feed